मैं एक प्राइवेट आफिस में काम करता हूँ और रोज सुबह साढे नौ बजे पहुंच कर एक घंटे में डाक या कुछ और जरूरी काम निपटाने के बाद, मेरे बाकी दिन की शुरुआत आफिस के बाहर रामू की चाय पीने के साथ होती है, क्योकि कैटीन खुलने का समय साढे दस बजे होता है। परंतु आज आफिस से ही सुबह-सुबह मुझे मींटिग के लिये कही बाहर निकलना था और समय कम होने के कारण आफिस में ही बिजली की केतली से ब्लैक टी बनवाने का फैसला किया। मैंने इन्टरकाम पर केशव को केतली में पानी डाल कर गर्म करने और चाय बनाने के लिये के लिए बोल दिया। केशव काफी सालों से मेरा हेल्पर है और आफिस के छोटे मोटे काम उसी के जिम्मे हैं। तभी फोन की घंटी बजी और दूसरी तरफ से संदेश मिला कि सुबह होने वाली मीटिंग का समय बदल कर दोपहर बाद का कर दिया गया है। इस तरह मींटिग के समय में बदलाव के कारण मेरी सुबह के रुटीन के अनुसार ही रामू की चाय पीने का समय बच रहा था। अत: मैने रामू की चाय मंगवाने का फैसला कर लिया। इन विचारों का बदलाव कुछ ही मिनटों में हो गया और अभी तक केशव मेरे पास नही पहुंचा था, जिससे चाय का पानी गर्म करने के लिये केतली में डाला जा सके। रोज की आदत के अनुसार केशव आया तथा बिना कुछ कहे ही पानी गरम करने लिये केतली में डाल कर और बिजली का स्विच आन कर चला गया, क्योकि मैंने इंटरकाम पर ऐसा ही आदेश दिया था। जिस समय केशव मेरे पास आया था उस समय मैं किसी फाइल को देखने में व्यस्त था इसलिए मैंने केतली में पानी डालने और उसको चालू करना नहीं देख पाया। चूंकि रामू की चाय मंगवानी थी इसलिये, इटरकाम से मैंने फिर से केशव को बुलाया तथा एक साथ दो काम कहे पहला केतली का स्विच बन्द कर पानी को फेकने के लिये (क्योंकि केतली में पानी भरा रखने से खराब होने का डर रहता है) तथा दूसरा चाय को रामू के यहाँ से लाने के लिए पर्ची ले जाने के लिये । केशव बिजली का स्विच बन्द कर पानी फेकने चला गया तथा वापस नहीं आया, मै उसके आने का इंतजार करने लगा जिससे रामू के यहाँ से चाय मंगवाने के लिये पर्ची दी जा सके, क्योंकि आफिस में और लोग भी हैं और सभी का हिसाब रखने के लिए रामू ने पर्ची से चाय भेजने की व्यवस्था कर रखी है। रामू महीने की मेरे सभी पर्चियों को मेरे पास भेज कर एक साथ भुगतान ले लेता है। जब करीब 15 मिनट निकल गये और केशव वापस नहीं आया तब मैंने फिर इटरकाम पर उसका पता किया कि वह कहां है और बुला कर पूछा कि पर्ची क्यों नहीं ले गए? उसने कहा मैं तो इंतजार कर रहा था कि आप कब दोबारा बुलाओगे और पर्ची दोगे। इस पर मैंने कहा कि मैंने तो पहले ही कह दिया था कि पर्ची लेते जाना और चाय ले आना। इस पर उसने कहा मैं तो इंतजार इसलिए कर रहा था कि अगर आपको वाकई जरूरत होगी तब आप दुबारा पर्ची देने के लिए खुद ही बुलाओगे। उसकी इस बात ने मुझे यह एहसास कराया कि क्या आज सरकारी तंत्र भी कुछ इसी तरह काम कर रहा है? जहां आम समस्याओं या जरूरतों (सफाई, बिजली, पानी, इत्यादि) की पूर्ति के लिये बार बार पत्राचार, आन्दोलन या घेराव करना पड़ता है और सरकारी तंत्र समस्या के समाधान का इंतजार करवाता रहता है। जबकि सरकारी तंत्र की व्यवस्था जिनमें सैकड़ों विभाग और लाखों कर्मचारी होते हैं को समय से और बिना शिकायत के समस्याओं से मुक्ति दिलाने का होता है।
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