जब से प्रबंधन गुरुओं की सरकार की योजनाओं को बनाने और चलाने में सलाहकार की भूमिका हो गई है, तब से कोरपोरेट जगत में प्रचलित तरह-तरह के शब्दों का चलन बढ़ गया है। इसी क्रम मे आज कल एक शब्द एसओपी (स्टैंडर्ड आपरेटिंग प्रोसीजर) काफी प्रचलन में है। सरकार किसी भी कार्यक्रम या योजना को लागू करने के लिए कार्य योजना बनाने के साथ साथ एसओपी भी बनाती है और जमीन पर उतारने के लिए इसी एसओपी के साथ आदेश देती है। प्रबंधन के लिए इससे अच्छी प्रणाली और हो भी क्या सकती है। देश में सभी को अमन चैन से रहने के लिए ढेर सारे कानून और नियम बने हैं और जैसे-जैसे समस्याएँ आती हैं वैसे-वैसे नए-नए कानून बनाएँ जाते हैं और पुराने क़ानूनों में शंसोधन किया जाता है। देश में किसी भी गलत काम को रोकने के लिए चाहे वह छोटी चोरी हो या सड़क पर असुरक्षित चलना, उसको रोकने के लिए कोई न कोई कानून मिल ही जाएगा। लेकिन क्या कानून बना देने से ही सब लोग सुरक्षित हो जाते हैं या सड़क पर कोई हादसे का शिकार नहीं होता। ऐसा लगता तो नहीं है क्योंकि कानून को अमल में लाने के लिए ही सारे पेंच हैं, जमीनी सत्यता पर तो कई बार कानून केवल किताबी बातें या अवसरवादिता के लिए ही बन कर रह जातें हैं। इसी तरह किसी भी योजना को चलाने के लिए बनाई जा रही एसओपीका भी यही हाल होता जा रहा है। सरकार के सामने रोज कोई न कोई चुनौती होती है जिसमें रोजगार, गरीबी, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे होतें और इनसे संबन्धित समस्याओं को दूर करने के लिए नई योजनाएँ बनती हैं। इन योजनाओं बनाने में उन लोगों का हांथ होता है जो शायद ही कभी उन योजनाओं के संभावित पात्रों से मिले हों या वहाँ गए हों जहां ये पात्र रहते हैं। योजनाएँ ऊपर से बन कर नीचे तक एसओपी के माध्यम से लागू करने के लिए तैयार की जाती है। चूंकि योजनाए लागू होने और उन योंजनाओं से होने वाले फायदे को सरकार, नीचे से आने वाले सरकारी आकड़ों से ही समझने की कोशिश करती है। जब योजना जमीनी स्तर पर होती है जहां पहले से ही भीड़ इंतजार कर रही होती है जिसको एसओपी या कानून जानने की न कोई इक्छा है और न ही अपने नंबर आने का सब्र। इन सबका परिणाम यह होता है कि जिन लोगों को योजनाएं चलाने का अधिकार है वह लोग अपने हिसाब से चलते हैं और टार्गेट को पूरा करने के लिए तरह तरह की रेपोर्टिंग शुरू हो जाती है। भीड़ किसी भी तरह की तैयारी की हवा निकालने के लिए काफी है। सरकार द्वारा कोरोना संक्रमण रोकने के लिए लाकडाउन करने की घोषणा हुई, सरकार का मानना था कि सभी लोग घर पर रह जाएँगे जिससे कोरोना का संक्रमण नहीं होगा, लेकिन जिस देश में 450 मिलयन लोग हर दिन के खाने के जुगाड़ के लिए कमाने के लिए रोज घर से निकलने के लिए मजबूर हों, उन लोगों के लिए दो दिन भी घर में रहना मुश्किल है ऐसे लोग इतने दिनों तक घर में कैद कैसे रह सकते हैं? इसको रोकने के लिए कितनी ही गाइड लाइन जारी की जायें या कितनी ही एसओपी बनाई जायें, इस भीड़ के आगे व्यर्थ हो जाती हैं। अनियंत्रित भीड़ का ही परिणाम हुआ कि हजारों-लाखों लोग सड़कों पर आ गए और आपदा सुरक्षा कानून एवं जनता की सहायता के लिए बनाई गई एसओपी की हवा निकाल दी।
भीड़ पर लागू होते कानून और एसओपी
- Post author:Behichak
- Post published:May 15, 2020
- Post category:Corona Crisis
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