लाक डाउन और सड़कों पर बेवजह टहलते लोग

जबसे लाक डाउन हुआ है सभी काम काज बंद होने से शहरों और कस्बों की सड़कें सूनी-सूनी सी हो गई हैं। लेकिन इसके वावजूद, सड़कों और गलियों में कई लोग घर से बाहर निकलने में परहेज नहीं करते और करोना के बचाव में जरूरी सोशल डिसटेंसिंग की धज्जियां उड़ाते रहते हैं। इन लोगों को सड़कों पर निकलता देख,  यह विचार आया कि क्या कारण हो सकतें है इन लोगों के घरों से बाहर निकलने के? लोंगों से बात करने पर तरह-तरह के कारणों का पता चला, जिनमें से कुछ कारणों को यहाँ पर बताने की कोशिश करता हूँ। पहला कारण जो सबसे बड़ा कारण दिखाई दिया वह था घर में बैठे-बैठे जी ऊबना, मतलब घर पर कोई काम नहीं होता और लोग इसलिए बाहर निकलते है कि बोर ना हों। लेकिन यह नहीं पता लग पाया कि बाहर निकल कर काम क्या करते है जिससे बोर नहीं होते।  दूसरा बहाना बाहर की हवा खाना गोया, घर में तो तो बिलकुल जेल है और हवा कहीं से नहीं आती तो दम  घुट रहा होगा। एक और बहाने की वजह “पान मसाले की तलब लग रही थी”, हाँ ये बड़ा कारण है लोगों के घर से बाहर निकालने का और सड़कों पर जमावड़ा लगाने का, जबकि सभी दुकानें बंद हैं और चोरी छुपे घरों से पान मसालों कों बेचनें का धंधा चल रहा है।  यानी लोगों के पास कितना समय होता है कि अपने शौक को पूरा करने के लिए और ऐसे मौकों पर जान जोखिम मे डाल कर घरों से बाहर निकलने की सोचते हैं। कई बार तो इन लोगों को प्रशासन/पुलिस के द्वारा दंडित भी किया जाता है जिसमें उठक-बैठक, सुताई, वगैरह शामिल है। लेकिन शौक जो न कराये वो थोड़ा है, इसके लिए दो चार थप्पड़ या डंडे खाने में भी कोई गुरेज नहीं। एक और कारण देखने में आया कि दोस्तों से मिलने जाना है अरे फलाने दोस्त से जब से लाक डाउन हुआ है मुलाक़ात ही नहीं हुई, यानी लाक डाउन तो बस घर पर रखने के लिए मौज मौज में सरकार ने कह दिया जैसे बचपन में जब पिताजी कहीं बाहर जाते थे तो यह हिदायत दे कर जाते थे कि घर से बाहर मत निकालना टांगे तोड़ देंगे, तब भी बाहर निकलते थे और कोशिश करते थे कि पिता जी को पता न चले। अब भी क्या करें जान से प्यारी दोस्ती जो है और हो भी क्यों न दोस्त ही तो हैं जिनकी वजह से कुछ लोग दुनिया में जिंदा हैं। कुछ लोग तो यह भी देखने के लिए बाहर निकलते है कि पुलिस की व्यवस्था कैसी है, देखा जाय कहीं रोक-टोक तो नहीं है। कुछ लोग यह भी सोच कर बाहर निकल पड़ते हैं कि मुझे कौन रोकेगा मैं तो फलानी पार्टी का कार्यकर्ता हूँ, और मुहल्ले में मेरा इतना रुतबा है। कुछ लोग केवल रसूख को परखने के लिए बाहर आते है और सड़कों पर टहलने की कोशिश करते हैं, लगता है करोना रसूख के आगे घुटने टेक देगा और भाग जाएगा। कुछ लोग सिर्फ आजादी को फील करने के लिए बाहर निकलते है। किसी ने सच ही कहा है कि लोगों को घरों मे रखना मेंढकों कों तौलने के बराबर है।

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