करोना वाइरस ने नौकरशाही के आकड़ों के खेल और नंबर एक आने की होड से पूरे देश को संकट में डाल दिया है| वर्षो से तरह तरह की रिपोर्ट पेश की जाती रही हैं, और कहा जाता रहा है कि देश में सब कुछ अच्छा चल रहा है और सभी देशवासी खुशहाल हैं| एयरकंडिशन्ड मीटिंग हाल में तरह तरह की योजनाओं पर चर्चा की जाती रही हैं और जिसमें जमीनी वास्तविकता को नजरन्दाज कर रिवियू मीटिंग में सब कुछ अच्छा-अच्छा दिखाने की परंपरा है| इसी का नतीजा है कि आज प्रवासी कामगार सड़कों पर अपने घर जाने के लिए दुनिया-जहान की मुश्किलों का सामना कर रहे हैं| मुझे याद है आज से तीस साल पहले भी जब मैं बिहार में नौकरी के सिलसिले में ट्रेन से आता-जाता था तब भी बिहार से निकलने वाली ट्रेनों में धक्कामुक्की की भीड़ और छतों पर चढ़ कर चलने की परंपरा थी| इतने वर्षों से लेकर इस वर्ष के सुरुआती महीनों तक तो कोई करोना का डर नहीं था, तब भी ट्रेनों में भीड़-भाड़ को लेकर कभी बहस नहीं हुई और इतनी भीड़-भाड़ के कारण को समझने के लिए मुझे नहीं याद, कि कभी मंथन हुआ हो| इतने वर्षों से बड़ी संख्या में लोगों के जान हथेली पर लेकर इधर-उधर चलने से रोकने के लिए राज्य में ही लोगों को रोकने पर कोई सकारात्मक कार्ययोजना पर विचार नहीं हुआ| हाँ, भीड़ की सहूलियत के लिए ट्रेनों और ट्रैकों को कई गुना तक बढ़ा दिया गया लेकिन इससे भीड़ तो कम नहीं हुई हाँ, और भीड़ के चलने का रास्ता मिल गया। जिन रास्तों पर दिन रात हजारों- लाखों की संख्या में लोग चलते हों उन पर कम क्षमता के साथ इतने लोगों के एक साथ चलने पर इस तरह की अफरा-तफरी होना तो लाज़मी है| यस मैनशिप के चक्कर में कहीं न कहीं वास्तविकता को नकार दिया जाता है| सच नकारने, समय पर निर्णय न लिए जाने की आदत और कई मौकों पर आकड़ों की बाजीगरी से अच्छा दिखाने की होड़ ने देश में प्रवासी कामगारों के लिए एक विचलित करने वाला भयावह मंजर पैदा कर दिया है, जिसको ठीक होने का इंतजार है|
घर वापस जाते कामगार
- Post author:Behichak
- Post published:April 30, 2020
- Post category:Corona Crisis
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