मोबाइल से बिखरता सामाजिक ताना बाना और वायलेंट होते बच्चे

पिछले दिनों पेपर में छपी लखनऊ की दुखद घटना जिसमें एक 15 साल की बच्ची ने भाई और माँ को जिसके साथ रहती थी अपनी पिस्टल की गोली से मार डाला।

यह होनहार शूटिंग चैम्पियन बच्ची जिसको उसके पिता ने सरकार से लाइसेन्स मिलने के कारण उसकी पिस्टल खरीद कर दी इसलिए थी कि वह शूटिंग का और अभ्यास कर सके। इस घटना नें झकझोर कर रख दिया और सामाज में हो रहे बदलावों पर सोचने को मजबूर कर दिया, कि बच्चों को पालने में कहाँ कमीं है?

कहीं ऐसा तो नहीं आधुनिकता और व्यस्तता के इस अंधी दौड़ में सब एक दूसरे से बिछुड़ने  लगे हैं?

परिवार के लोग या तो अपने कामों में व्यस्त रहते हैं और यदि समय मिला तब भी अपने अपने मोबाइल से चिपके हुये या तो गेम खेलते रहते हैं या सोशल साइट की आभासी दुनिया के फ़्रेंड्स, फोलोवर्स की पोस्ट, फोटो को शेयर और लाइक करते रहते हैं। कहाँ किसी के पास समय है अपने बच्चों को देखने का कि घर और बाहर बच्चे क्या कर रहे हैं या किससे मिल रहे हैं,? बच्चे अपनी दुनियाँ में खो से जाते हैं।

एक और सोच ने पिछले कई सालों में एक बड़ा बदलाव किया है और वो है बच्चों को बचपन से ही गलत बातों पर न टोकने का जिसके पीछे का तर्क होता है कि बच्चों को टोकने पर उनका स्वाभाविक विकास नहीं हो पाता और आगे चल कर वो दब्बू बन जाते हैं।

ऐसा नहीं है कि बच्चों को शिक्षा में नैतिकता का पाठ नहीं पढ़ाया जाता, लेकिन ऐसा लगता है कि यह पाठ केवल किताबी होकर रह गया है और इस शिक्षा उद्येश्य मात्र परीक्षा में पास होना भर रह जाता है।  एकल परिवार,  मोहल्ले  की जगह फ्लैट और बंगलो संस्कृति ने बच्चों को सही गलत के फर्क को दिखाना अब लगभग बंद कर दिया है।

बच्चों की अथवा किशोर-किशोरियों की रोज़मर्रे की गतिविधियां जो सामाजिक दायरे के बाहर हों,  जिनको पहले बड़े बुजुर्गों के द्वारा रोका या टोका जाता था का चलन अब लगभग बंद सा हो गया है। अगर किसी कारणवश किसी से टोक भी दिया तो लोग बुरा मान जाते है और हो सकता है टोकने वाले को नसीहत भी मिल जाये अरे ये आपका जमाना नहीं। हम भला बुरा समझते हैं आप अपने काम से काम रखिए।

इन्हीं सब बदलावों के कारण अब लोग गलत बातों को टोकने के बजाय नजरंदाज करना ज्यादा मुनासिब समझते हैं। किसी के गलत सही के फर्क को न बताने के कारण धीरे धीरे बच्चे समझते हैं कि वह जो कर रहे है वही सही है और कभी अगर रोका टोका जाता है तो बच्चे कई बार आक्रामक भी हो जाते हैं।

बच्चे तो घड़े बनाने वाली मिट्टी के समान होते है जैसा उनको समाज के लिए बनाया जाएगा वैसे ही बनेंगे।

अपनी प्रतिक्रिया और सुझावों को Leave a Reply में जरूर दें।
धन्यवाद!

This Post Has 5 Comments

    1. Behichak

      Thanks…Behichak is comming back after 10 months break. Wait for new arcticles to be published very soon.

  1. Twicsy

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